वो बीते हुए दिन
उन झरनों, उन झीलों, उन नदियों की यादें,
उन पर्वतों पे मंडराते घटाओं की यादें,
उन रास्तों पे टहलते हुए की गई जो बातें,
गुजर जाता है वक्त मगर नही जाती हैं यादें...
रात को सोते हुए सपनों के रूप में,
या दिन को laptop पे तस्वीरों के रूप में,
किसी से गुफ्तगूँ करते हुए आँखों के सामने ,
आ जाती हैं वोह कहीं भी अनेको स्वरुप में...
समझ नही आता की कैसे भुलाऊँ मैं,
सोचता हूँ की क्या-क्या भूल जाऊं मैं,
मुझे तो अब रास्ता दिखता नही कोई भी,
तुम ही बताओ की कैसे इस दिल को समझाऊँ मैं...
बीत गई वो रातें, बीत गए वो दिन,
गुजरते लम्हों में फिर भी जीतें हैं वो दिन,
लगता है जीवन में कभी न भूला पाऊँगा मैं,
वोह बीती हुई रातें वोह बीते हुए दिन...
--- Sarit (23 September 2005)
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