Thursday, November 13, 2008

सरित का प्रेम प्रसंग

बंसल क्लास्सेस में ज्यों रखा कदम

तो देख बंसल सर का चश्म-ऐ-बुद्दूर रंग,

मैंने सोचा कुछ करके दिखाऊँ

क्यों न किताबों से इश्क फर्माऊँ.

पहला प्यार ‘Log’ से किया

फ़िर लोनेलिनेस में ‘Loney’ लिया.

‘समीकरण’ जब मेरे पीछे परे

इश्क के ‘straight line’ मुझे तेरहे लगे.

‘conditions for concurrence’ जेरो लगे,

और ‘circle’ ने मुझे घुमा ही दिया.

तब, मैंने नए ‘methods’ पर ‘progression’ किया.

फ़िर, ढूँढा मैंने ‘solution’, ‘love triangle’ का.

किताबों का ‘combination’ भी बदल दिया.

अंततः पाया ‘ultimatum’ मेरी शादी के function का.

मैंने अपनी बरबाद ‘circular’ ज़िन्दगी को ‘inverse’ किया,

पूजा दीदी, हाँ अपनी पूजा दीदी, ने फ़िर मुझे सहारा दिया,

(1+x)n से मेरा टांका भीरा दिया.

मैंने अब, अपने सारे ‘Limits’ को फ़िर पार किया,

‘Continuity’ को प्रेम से गोद में लिया.

तद्पश्चात मैंने ‘pleasures’ ‘derive’ किए.

किताबों से धूल को ‘differentiate’ किया.

‘Classes’ और ‘tests’ को ‘integrate’ किया.

अब देखिये दोस्तों इसका ‘result’ क्या हुआ.

पढाई ‘indefinite’ और फिल्में ‘definite’ हो गई,

सोना ‘minimize’ और ‘tension’ ‘maximize’ हो गया,

किताबों ने टेबल का ‘area’ घेर लिया.

यारों, ‘life’ बड़ी ‘monotonic’ हो गई.

तब जाकर, ‘Mr. Vector’ ने मेरे प्रीत को ‘3rd dimension’ दिया.

फिर दास्तान-ऐ-ज़िन्दगी ‘complex’ होती चली गई.

‘Miss Probability’ की गर्मी ने ठण्ड में भी दिल को जला दिया

और अब या खुदा तुने 1st को भी ‘class’ रखवा दिया.

और ज़िन्दगी से कोई उम्मीद ही नहीं.

‘Whist drive’ खेलने का मौका मिले की नही.

दोस्तों ने हाथ तोड़कर भी ‘fifty’ लिए.

सच्चें तो यह है, अगर ज़िन्दगी जिया मैंने

तो ‘Bansal Classes’ में जिया.

‘Bridge’ के पत्तों की तरह मैंने

अपनी प्रेमिका को, आपके समक्ष ‘disclose’ किया.

फ़िर आपकी बुरी नज़र से बचाने के लिए

पढाई मैंने सात फेरे लिए

ज़िन्दगी में पहली बार ‘Sir’ का ‘dialogue’ भूला

‘Worries Invited For Ever (WIFE)’ ने मुझे बेहोश किया.

अब होश आए न कभी, येही आरजू है.

पढाई अब तू ही मेरी जुस्तजूं है.

पढाई अब तू ही मेरी जुस्तजूं है.

‘Sir’, इस कविता को अपने ‘censor’ किया?

क्या बंसल सेना को अपने मेरे पीछे लगा दिया?

इस-से पहले की मैं आगे कुछ ‘fire’ करून,

क्यों न ‘Sorry for interruption’ का board धरून.

So guys, I am off for a KitKat break before I am broken.

Sarit n Sam (30th December 1998)


Epilogue: This poem was written on the eve of the annual New Year Bash at Bansal Classes, Kota. Sam, the co-author, is my brother. This is my second poem and is a tribute to the greatest teacher of my life Mr. V.K. Bansal.

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