Thursday, August 27, 2009

खलिश पूछें वो मेरा दिल-ऐ-हाल क्या है,
तो होगा मुझको सुकून ज्यादा

झुकी हुई पलकों की कशिश ने
बना दिया है हमारे दिल को प्यादा

कभी वो कम्सिम हमारे पास है आता
कभी बाहें छुराके हमसे दूर है जाता

कभी ख्यालों में उसका रूप है आता
कभी हमारे लबों पे वो छाता

The above is a work -in-progress based on the following ghazal sung by Jagjit Singh:
अभी वोह कमसिन उभर रहा है,
अभी है उसपर शबाब आधा [२]

अभी जिगर में खलिश है आधी,
अभी है मुझपर खिताब आधा

अभी वोह कमसिन...

मेरे सवाल-ऐ-वस्ल पे तुम नज़र झुकाए खड़े हुए हो [२]
तुम्ही बताओ यह बात क्या है
सवाल पुरा जवाब आधा

अभी जिगर ...

अभी वोह कमसिन...

लगाके लारे ले तो आया शेख साहब को मैकदे तक [२]
अगर की दे दो घूँट तो आज पी लें
मिलेगा लुझ्को सबाब अध

अभी जिगर ...

अभी वोह कमसिन ...

कभी सितम है, कभी करम है, कभी तवज्जो, कभी तलाफ्फुल [२]
यह साफ़ ज़ाहिर है मुझपे अब तक,
हुआ हूँ मैं कामयाब आधा

अभी जिगर...

अभी वोह कमसिन...

2 comments:

Gaurav said...

wah...didnt knw this side of ur personality

Anonymous said...
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