Monday, June 15, 2009

A ghazal by Pankaj Udhas which I like

हम जैसे तनहा लोगों का अब रोना क्या मुस्काना क्या
जब चाहने वाला कोई नहीं फिर जीना क्या मर जाना क्या
सौ रंग में जिसको सोचा था, सौ रूप में जिसको चाहा था
वह जाने-गजल तो रूठ गयी अब उसका हाल सुनना क्या
जब चाहने वाला कोई नै फिर जीना क्या मर जाना क्या

आवाज किसी को दे लेकिन एक नाम तुम्हारा होठों पर
हर शकल से उभारो तुम ही तुम यूँ खुद को मगर बहलाना क्या
रातों का सफ़र है दिन के लिए, और दिन में तम्मना रातों की
जब पों में रस्ते खो जाये फिर रुकना क्या घर जाना क्या
हम जैसे तनहा लोगों का अब रोना क्या मुस्काना क्या
जब चाहने वाला कोई नै फिर जीना क्या मर जाना क्या

No comments: