हम जैसे तनहा लोगों का अब रोना क्या मुस्काना क्या
जब चाहने वाला कोई नहीं फिर जीना क्या मर जाना क्या
सौ रंग में जिसको सोचा था, सौ रूप में जिसको चाहा था
वह जाने-गजल तो रूठ गयी अब उसका हाल सुनना क्या
जब चाहने वाला कोई नै फिर जीना क्या मर जाना क्या
आवाज किसी को दे लेकिन एक नाम तुम्हारा होठों पर
हर शकल से उभारो तुम ही तुम यूँ खुद को मगर बहलाना क्या
रातों का सफ़र है दिन के लिए, और दिन में तम्मना रातों की
जब पों में रस्ते खो जाये फिर रुकना क्या घर जाना क्या
हम जैसे तनहा लोगों का अब रोना क्या मुस्काना क्या
जब चाहने वाला कोई नै फिर जीना क्या मर जाना क्या
Monday, June 15, 2009
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