Thursday, November 13, 2008

ढलती शाम…

वो हसीन वादियाँ
वो रंगीन शामें
ढलते सूरज को निहारते हुए रात का इंतज़ार
सुनहरे आसमान पे चमकते
एक इकलौते तारे का नज़ारा

झील के किनारे खेलते
बच्चों की किलकारियां
सूरज के ढलते स्वरुप को
सलाम करता चाँद
और इस सुहाने आलम
में टकराते हुए जाम

वो आहिस्ते से शुरू होकर
बढ़ती बर्फ की फुहार
धीरे से धरा को ढकती
बर्फ की रजाई
चमकते चाँद की रौशनी में
चाँदी के वर्क सा एहसास देती
और झील के दुसरे छोर पे
चाँदी के आभूषण सा
धरती को सजाती
वो पर्वतों की माला
सुनसान जिसके ऊपर टीम-तिमाता एक रौशनी का पुंज
जैसे चाँद को अपने जीवंत रौशनी से चिढ़ा रहा हो

रात के इस शांत वातावरण को
झंक्झोरती घोसलों को लौटते पंछियों की चहचाहट
और इस हसीन मंज़र का लुफ्त उठाते
बाहों में बाहें डाले दो इंसान
ढलते अन्धकार में
जिनके चमकती आँखों में झलकता प्यार
मानो अपने यादों के हार में
पिरो रहा हो कुछ और मोती स्वरुप दाने…

Sarit Guha Thakurta
06 January 2006

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