नशीली रात
रात नशीली है,
मस्त समां है.
जिस्म तो यहीं है,
न जाने दिल कहाँ है?
हम भी यहीं हैं,
तुम भी यहाँ हो,
दिल बेताब और
मुंह बेजुबान है.
हम तुम्हे देखते हैं
तुम हमें देखते हो
नज़रों से इशारे हम दोनों करते हैं
पर नज़रों से नज़रें मिलती कहाँ है?
क्या तुम बेताब हो
जितने हम बेताब हैं?
यदि हाँ तो
चलो तोर देते हैं शर्म की दीवारें,
तुम हमें कह दो जो हम सुन-न चाहते हैं,
हम तुम्हे कह दें कि हम तुम्हे चाहते हैं.
दिल की बातें दिलों में ही न दबी रह जाएँ,
अरमानों के गुलिस्तान न मुरझा जाएँ.
यह माना हया अपनी जगह है,
पर हमारे पास आब-इ-हयाद कहाँ है.
हम तुम्हे कितना चाहते हैं
हम कैसे बताएं?
बताने के लिए
वक्त ही कहाँ है?
इसलिए, मेरी जान! फायदा इसी में है
तुम हमें कह दो,
‘तुम हमें चाहते हो.’
हम तुम्हे कह दें,
“हम तुम्हे चाहते हैं.”
Sergeant
Disclaimer: No protagonist in mind when this was written... Purely a fantasy/figment of imagination
Thursday, November 13, 2008
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