साकी के नाम
कितने दर्द पाये हैं इस दिल ने बेदर्द ज़माने से,
तू भी तो न तड़पा मुझे अपने बहानों से…
दर-दर भटक कर आया हूँ तेरे ठिकाने पे,
तू भी तो न ठुकरा मुझे अपने मैखाने से…
जन्मों से प्यासा है ये आशिक आंसू पीते हुए,
आज बुझा लेने दे प्यास इसे अपनी आंखों से…
बूझ लेने दे पहेलियाँ तेरी निगाहों के,
कुछ वक्त गुजार ले साथ मेरे इसी बहाने से...
बहुत बेवफाई देखी है वफ़ा के नाम पे,
पर कभी पुकारी नहीं गई है सकी “बेवफा” के नाम से...
खून के घूँट पीते हुए तो सदियों गुजर गए,
आज दो घूँट मय पिला दे तू अपने इन नाज़ुक हाथों से…
-- Sarit Guha Thakurta
27-06-2005 in train
Disclaimer: No protagonists in mind...
Thursday, November 13, 2008
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